एक तावीज़.... एक ख़ातून एक मौलवी साहब के पास गई, "मौलवी साहब! कोई ऐसा तावीज़ लिख दें कि मेरे बच्चे रात को भूक से रोया ना करें।" मौलवी साहब ने तावीज़ लिख दिया। अगले ही रोज़ किसी ने पैसों से भरा थैला घर के सहन में फेंका, थैले से एक पर्चा निकला, जिस पर लिखा था, कोई कारोबार कर लें...। इस बात पर अमल करते हुवे उस औरत के शौहर ने एक दुकान किराए पर ले ली, कारोबार में बरकत हुई, और दुकानें बढ़ती गईं। पैसों की बारिश सी हो गई...। पुराने संदूक़ में एक दिन औरत की नज़र तावीज़ पर पड़ी। "न जाने मौलवी साहब ने ऐसा क्या लिखा था?" तजस्सुस में उसने तावीज़ खोल डाला...। लिखा था कि: "जब पैसों की तंगी ख़त्म हो जाये, तो सारा पैसा तिजोरी में छिपाने की बजाय कुछ पैसे ऐसे घर में डाल देना जहाँ से रात को बच्चों के रोने की आवाज़ें आती हों...।"
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